यह शर्मींदगी भरी खबर दक्षिण पूर्व रेलवे के एक सहायक सुरक्षा आयुक्त आद्रा जे.कुजूर से संबधित है जो उम्र एवं राजकीय पद की गरिमा को कलंकित करने पर तुले हुए हैं।

जिन्हें वर्तमान् में चक्रधरपुर में संबद्ध कर दिया गया है।

प्रोन्नति प्राप्त सहायक सुरक्षा आयुक्त की क्या उम्र होगी उसका अंदाजा लगा सकते हैं,ये अपने लड़की की उम्र के महिला आरक्षियों को रात को अपने क्वार्टर पर बुलाते हैं। ये अलग अलग लड़कियों को टटोलते हैं,अपने पद का दुरूपयोग करते हैं,अनुशासनिक और प्रशासनिक न्याय के पद का दुरूपयोग करते हैं, पर कुछ पीड़ित महिला आरक्षी अपनी ईज्जत और बदनामी से इनके बिरूद्ध शिकायत नहीं करती।जिससे इनका मनोबल बढ़ता जा रहा था, परन्तु इस बार उनका पाला एक हिम्मतवाली, बहादुर, चरित्रवान महिला आरक्षी से पड़ा,जो उनकी काली करतूत का बिना नौकरी में भविष्य में होने वाली परेशानी के खतरे के भय के भंडाफोर की और लिखित शिकायत की।

वर्तमान् घटनाक्रम दिनांक 11/10/2021 के रात्रि 00/50 बजे की है। पीड़ित महिला आरक्षी ने सहायक सुरक्षा आयुक्त आद्रा जे.कुजूर के बिरूद्ध हिन्दी में एक लिखित शिकायत अपने निरीक्षक को सौंपी ,जिसमें सहायक सुरक्षा आयुक्त के बिरूद्ध शिकायत की है। महिला के शिकायत की जांच एक महिला उपनिरीक्षक को दी गयी है। घटना की सूचना निरीक्षक द्वारा मंडल सुरक्षा आयुक्त दी गई तो जांच अधिकारी महिला उपनिरीक्षक एवं एक अन्य महिला उपनिरीक्षक ने पीड़िता को मंडल सुरक्षा आयुक्त के पास पेशी करवायी। इस संबध में एक रोजनामचा प्रवृष्टि संख्या 738 समय 19.00 बजे दिनांक 11.10.2021 काफी देर से दर्ज किया गया।

दूसरे दिन सहायक सुरक्षा आयुक्त को चक्रधरपुर संबद्ध कर दिया गया। सहायक सुरक्षा आयुक्त का यह पहला मामला नहीं है। एक अन्य महिला आरक्षी ,जो बदनामी, नौकरी में भविष्य में होने वाली परेशानी की संभावना से डर कर कोई शिकायत नहीं की थी,ने संपर्क कर जानकारी दी कि उसे भी इस तरह का मैसेज रात्रि करीब 23/30 बजे कुछ माह पहले व्हाट्सएप पर भेजकर रात्रि में क्वार्टर पर बुलाया गया था। पहचान की गोपनीयता बनाए रखने के लिए चैट की एवं इस मामले से संबधित सबूत की प्रति प्रकाशित नहीं की जा रही। पत्ता नहीं और कितनी पीड़िता होगी।

महिला अपराध के आरोपी अधिकारियों का जमावड़ा दक्षिण पूर्व रेलवे बनता दिख रहा।
सर्व प्रथम् निरीक्षक एस.एन.शर्मा पर एक महिला कांस्टेबल ने एफआईआर करवायी जिसमें किसी तरह मैनेज कर बचने में कामयाब हो गये।
हिम्मत इतनी बढ़ी की दूसरी बार अपने पूत्री के बराबर उम्र की बाहरी महिला एस.मुखर्जी को वीडियो काल पर नंगा रूप दिखाने लगे।उससे संबधित समाचार पढ़े। शिकायत और जांच के बाद मात्र डिमोशन।

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फिर स्वयं वर्तमान् PCSC/RPF/SER का एक जवान की पत्नी के साथ बातचीत का रंगीला ऑडियो वायरल हुआ।

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अभी PCSC/RPF/SER के बिरूद्व एक अन्य शिकायत हुयी जिसमें संभवतः मेरी सहेली टीम के द्वारा जुटाई गई मोबाईल नम्बर पर एक अकेली महिला यात्री को देर रात वीडियो काल कर कुशल यात्रा का समाचार पुछने के नाम पर परेशान करने आरोप यात्री ने लगायी। सवाल वीडियो कॉल क्यों?
देखिये वीडियो कॉल का स्क्रीन शाट।

जब इतने बड़े अफसर इस तरह के आरोपों के आरोपी हैं वे किस नैतिकता से इस तरह के आरोप पर निम्न रैंक के जवानों को बिना जांच के घर भेजते हैं। जबकि सहायक सुरक्षा आयुक्त को इस घटना के बाद मात्र चक्रधरपुर भेज दिया गया। क्या कोई सिपाही रहता तो यही कारवाई होती? क्या अनुशासन,कोड ऑफ कंडक्ट का पालन करने का ठेका सिर्फ निम्न श्रेणी के कर्मी लिए हैं? उच्चाधिकारी क्या इससे मुक्त हैं? इससे पहले इसी आद्रा पोस्ट के व्हाट्सएप ग्रुप, जिसमें महिला आरक्षी भी सदस्य है, में एक जवान ने कई कई ब्लू फिल्म पोस्ट किया। मामला दब गया था,परन्तु जब हमने उठाया तो जवान सस्पेंड हुआ और एक बहुत ही छोटा दंड दिया गया। वही एक सहायक उप निरीक्षक को बाहरी महिला को पत्नी बताकर रखने एवं ड्यूटी में अनुपस्थित के आधार पर घर भेज दिया गया।
संभावना थी वर्तमान् ASC वाला मामला भी दब जाता,परन्तु हमने ससमय ASC/DSC एवं अन्य को व्हाट्सएप मैसेज भेजकर प्रतिक्रिया चाही,परन्तु सभी मौन तो रहे। पर मामला उस दिन लीपापोती नहीं हो पाया।

इस मामले को लीपापोती की जा रही इसका सबूत ससमय रोजनामचा में दर्ज नहीं करना,एक नई अनुभवहीन महिला उपनिरीक्षक को जांच अपने से उच्च एवं राजपत्रित अधिकारी सहायक सुरक्षा आयुक्त के बिरूद्ध देना,किस नियम से ऐसा किया गया इसकी जानकारी तो निरीक्षक ही दे सकते है। गुगल सीट में महिला आरक्षी द्वारा किसके बिरूद्ध और क्या शिकायत की प्रकृति थी,का जिक्र न कर मामले की गंभीरता को दबाने एवं छुपाने का प्रयास करना इत्यादि क्या दर्शाता है?
एक सहायक सुरक्षा आयुक्त के बिरूद्व जांच उससे उच्च रैंक के अधिकारी द्वारा की जानी चाहिए न कि अधीनस्थ अधिकारी अपने अनुशासनिक अधिकारी का जांच करेगा,पता नहीं आद्रा का RPF महकमा भारतीय संविधान या RPF अधिनियम या नियम या रेल सेवक अनुशासनिक नियम से चलता है या स्वयंभू शासनादेश से।

एक सहायक सुरक्षा आयुक्त जो एक राजपत्रित अधिकारी है एवं उसपर रेल सेवक (अनुशासन एवं अपील) नियम 1968 के तहत जांच एवं कारवाई हो सकती है। RPF नियम के तहत नहीं।

महिला उपनिरीक्षक ने कैसे इस मामले की जांच को स्वीकार किया?
क्यों नहीं निरीक्षक का ध्यान आकृष्ट कराया? निरीक्षक किस नियम से जांच दिया।

निरीक्षक को शिकायत के संदर्भ में कोई भौतिक सबूत नहीं पेश की तो वह अन्डरटेकिंग लेकर शिकायत को उच्च अधिकारियों को अग्रसरित करते।

इस सहायक सुरक्षा आयुक्त का कार्य इतना घृणास्पद है कि इसे तो तुरंत घर भेज देना चाहिए। इसके विभाग में रहते विभाग की महिला कर्मियों की इज्जत खतरे में हमेशा रहेगा।पीड़ित महिला आरक्षी ASC के लड़की की उम्र की होगी। उसके साथ दुर्व्यवहार, शर्मनाक!
क्या ऐसे व्यक्ति अपनी पैदा की हुयी लड़की के साथ भी इसी तरह का दुर्व्यवहार करेगा? महकमा के ऐसे मुखिया अपने निम्न रैंक के कर्मियों से चरित्रवान बनने का किस मुंह से उपदेश देते होंगे।
DG/RPF एवं रेल मंत्रालय को ऐसे संस्कारहीन, चरित्रहीन अधिकारियों पर कठोर कारवाई कर जवानों के समक्ष उदाहरण प्रस्तुत करना चाहिए,जिससे महिला कर्मियों में विश्वास जगे कि चाहे कितना बड़ा अधिकारी हो समान कारवाई होगी। RPF की छबि को जितना इस PCSC के कार्यकाल में नुकसान हुआ है उतना किसी के कार्यकाल में नहीं।