दक्षिण पूर्व मध्य रेल बिलासपुर RPF के करीब 50 वर्षीय निरीक्षक राणा प्रताप सिंह ,( वर्तमान में जेल में हैं), जो करीब 25 वर्षीय अनुसूचित जाति की युवती को (वर्षो से)नाबालिग अवस्था से ही बलात्कार,ब्लैकमेल,जबरन गर्भपात करवाने,रिपोर्ट करने पर पैसा देकर मामला रफा दफा करने,मारपीट कर मामला वापस लेने जैसे जघन्य अपराध में संलिप्त रहा है।
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बलात्कार पीड़िता को 5 लाख देना भी काम न आया दुष्कर्मी RPF निरीक्षक मामला दर्ज होते ही फरार!
पुलिस थाने में पीड़ित युवती द्वारा शिकायत दर्ज करने एवं काफी कानूनी लड़ाई के बाद उच्च न्यायालय तक से एंटीसिपेटरी बेल खारिज हो जाने पर आरोपी RPF निरीक्षक राणा प्रताप सिंह को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया ,वर्तमान में जेल में है।
इसी बीच पीड़ित युवती का दावा है कि राणा प्रताप सिंह द्वारा मारपीट के परिणाम स्वरूप एक आंख की रौशनी चली गई।
आरोपी निरीक्षक अक्ष्मय कृत्य करने के बाद आरोपों को स्वीकार भी करते हुए पीड़ित से माफी मांगता है।
माफीनामा ऑडियो को सुनिये।
इस ऑडियो की सत्यता की पुष्टि हम किसी प्रकार नहीं करते।
पीड़िता का दावा है कि उसने विभाग को आरोपी निरीक्षक राणाप्रताप सिंह से संबधित कई ऑडियो और वीडियो एवं फोटो ग्राफ विभाग को सबूत के तौर पर दिये। विभागीय जांच के दौरान पीड़िता के साथ ऐसे बर्ताव किया जाता रहा जैसे पीड़िता ही आरोपी हो और पीड़िता ने राणा प्रताप सिंह के लम्बे और जघन्य अपराध की रिपोर्टिंग कर बहुत बड़ा अपराध किया हो।
विभाग के कर्मियों के बर्ताव की शिकायत DSC को करने पर जो जवाब पीड़िति को दिया गया वह सुनिये !
ऑडियो
इस ऑडियो की सत्यता की किसी भी रूप में हम पुष्टि नहीं करते।
कई महीने बीत जाने के बाद विभाग राणा प्रताप सिंह को निलंबित कर,आरोप पत्र थमा कर जांच को स्थिर कर छोड़ दिया है। परन्तु जैसी बात ऑडियो में डीएससी ने पीड़िता कही है कि R.P.Singh को नौकरी से निकालने का बहुत प्रेशर है,उसमें इंक्वायरी खत्म करनी। सवाल वो प्रेशर क्या खत्म हो गया? क्या इंक्वायरी खत्म हो गयी? या पीड़िता को झूठा आश्वासन दिया गया।
विभाग आरोपी निरीक्षक को जीवन यापन भत्ता के रूप में मोटी रकम देकर मामले में उस पैसे के बल पर येन केन प्रकारेण बचाव का मौका मुहैया करा रही है।
आखिर विभागीय कारवाई की कोई समय सीमा होती है या नहीं।
अक्सर विभाग में एक ही प्रकार के अपराध के लिए अलग अलग रैंक के अधिकारियों के लिए एक ही किस्म के सबूत की विश्वसनीयता को अलग अलग कसौटी पर कसा जाता है।
कुछ मामलों में जहां उच्च अधिकारी संलिप्त थे एवं पीड़िता के रेकार्डिंग सबूत की वैज्ञानिक जांच के नाम पर मामला दस वर्ष से ज्यादा से लटक रहा। और वैज्ञानिक प्रयोगशाला से जांच रिपोर्ट आने में वर्षो लग जाते हैं।
वही उसी सबूत को निम्न कर्मचारियों के मामले में सबूत की वैज्ञानिक जांच की जरूरत नहीं समझी जाती। विभागीय जांच और सबूत की कसौटी का पैमाना अलग अलग रैंक के लिए अलग प्रकार की होती है,ऐसा प्रतीत होता है।
आरोपी निरीक्षक राणा प्रताप सिंह की जगह पर अगर कोई निम्न श्रेणी का अधिकारी होता तो बिना जांच रेसुब नियम 161 के तहत अभी तक बर्खास्त हो गया होता।
आखिर दुष्कर्म आरोपी निरीक्षक पर विभागीय कारवाई कब तक पूर्ण होगी? कब तक और क्या सजा मिलेगी?
उच्च रैंक के आरोपी अधिकारी पर विभाग क्यों इतना नरम रवैया अपनाती है?
वर्तमान् डीजी आरपीएफ को आरोपी अधिकारियों के विरूद्ध कारवाई की समीक्षा करनी चाहिए और कारवाई में लेटलटीफी के कारणों की बहानों की सामान्य संतुष्टी की जांच कर उचित कारवाई संरक्षकों पर भी करनी चाहिए।