आखिरकार RPF/Sr.DSC मो.साकिब के घर से CWC (चाईल्ड वेलफेयर कमिटी) के सदस्यों द्वारा बंधुआ अनाथ नाबालिग शारिरिक,मानसिक शोषण की शिकार नौकरानी लड़की को मुक्त कराया गया।
ज्ञात रहे पूर्व मध्य रेलवे RPF के रांची अवस्थित परियोजना पद पर तैनात Sr.DSC (उप मुख्य सुरक्षा आयुक्त) ने अपने घर में एक नाबालिग अनाथ लड़की को गरीबी का फायदा उठाकर बंधुआ मजदूर की तरह रखे हुए थे एवं एक जवान शंम्भू कुमार ठाकुर को उस अनपढ़ अनाथ गरीब लाचार लड़की के साथ उसकी अनुचित फोटो लेने विभिन्न सोशल मीडिया में वायरल करने की धमकी देकर शारिरिक और मानसिक शोषण के आरोप में एक जवान को रेसूब नियम कानून को धज्जी उड़ाकर निरीक्षक के बदले नियम बिरूद्ध एक पुरूष सहायक निरीक्षक से अपनी मर्जी अनुसार बयान दर्ज करवाकर बरखास्त कर दिये। पदस्थ निरीक्षक पर भी कारवायी हो जो उस सहायक उपनिरीक्षक के द्वारा अनुशासनिक मामले में नियम बिरूद्ध दर्ज किये गये बयान को टिप्पणी के साथ अग्रसरित किया।
इस संबध में सबसे पहले हमने मुद्दे को उठाया और कुछ तीखे सवाल किये जिसका कोई संतोषजनक जवाब मो. साकिब के पास नहीं था और उन्होंने कई झूठे आश्वासन दिये। इन्होंने अपने गलत कृत्य के बचाव में कभी अनाथ नाबालिग गरीब लड़की का अभिभावक होने का दावा किये तो कभी कभी उसके साथ हुए अन्याय के लिए पुलिस में जल्द जाने की बात बोले कभी अपनी इमानदारी की दुहाई दी तो कभी फर्जी यात्रा भत्ता लेने वाले जवानों के बिरूद्ध की गई शिकायत के कारण उन जवानों द्वारा साजिश की बात बोले।
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परन्तु अब जो बात खुलकर आ रही है वह यह है लड़की काफी कम उम्र की है उसकी उम्र 10 से 13 वर्ष के बीच की प्रतीत होती है (जांच में असली उम्र पत्ता ही चल जायेगा)तथा अनपढ है जो सोशल मीडिया से उतनी परिचित भी नहीं है।
अगर लड़की के साथ शारिरिक शोषण हुआ तो उस दोषी जवान की सजा सिर्फ बरखास्तगी कैसे एक देश में दो कानून कैसे?
सरकारी कर्मचारी विभत्स अपराध करे तो सिर्फ सेवा से बरखास्त । जनता वही अपराध जनता करे तो POCSO Act,SC/ST prevention of atrocities act,IPC जैसे कानून के सहारे वर्षों तक कठोर कारावास।
ये लोकतंत्र है या राजतंत्र या तानाशाही राज। कानून और न्याय व्यवस्था को ये अधिकारी खिलवाड़ बना रखे हैं।
पुलिस में मामला न सौंपकर Sr.DSC मो.साकिब ने खुद अपनी पोल खोल ली साथ ही अपनी कारवाई को संदिग्ध बना लिया।
हालांकि चाईल्ड लाईन ने अनाथ नाबालिग बच्ची को मुक्त कराकर अपने सानिध्य में ले लिया है जहां दूध का दूध और पानी का पानी होने की संभावना है कि लड़की के साथ शारिरिक मानसिक शोषण हुआ या नहीं। अगर हुआ तो अवश्य पुलिस में मामला दर्ज कर आरोपी जवान पर कठोर कारवाई होनी चाहिए,सख्त से सख्त सजा होनी चाहिए।
अगर उस नाबालिग बच्ची को सिखला पढ़ा कर सिर्फ जवान से बदला लेने के लिए मोहरा बना कर बयान दिलवाया गया है तो Sr.DSC मो.साकिब पर मुकदमा दर्ज कर कानूनी और प्रशासनिक कारवाई उसी तरह करना चाहिए जिस तरह आरोपी जवान को बरखास्त किया गया है।
मो.साकिब जो अपने को बहुत बड़ा हितैषी बच्ची का बताते थे वह एक प्रपंच मात्र था । मात्र पांच हजार की मासिक पर (जैसा कि विभिन्न मीडिया में खबर आ रही है) पर 24 घंटे बंधुआ मजदूर बनाकर रखे थे तथा एक नाबालिग लड़की को शिक्षा के संविधानिक अधिकार के साथ बच्चे एवं महिलाजनिक कई अन्य अधिकार से वंचित रखे और वह अनाथ नाबालिग बच्ची का शोषण कर रहे थे। भेदभाव और प्रताड़ना ऐसा कि बेचारी बच्ची को घर की टायलेट का प्रयोग न कर पड़ोसी का टायलेट प्रयोग करना तक रहा। जबकि डींग हांकते थे कि उसका हितैषी हैं उसका अभिभावक हैं फिर ऐसा व्यवहार क्यों? क्या कोई अभिभावक का दावा करने वाले बच्ची को घर में काम करवायेगें और शौच पड़ोसी का प्रयोग करने को कहेंगे।
सही मायने में उस अनाथ, नाबालिग,अनुसूचित जनजाति की लड़की के साथ हुए अत्याचार/शोषण के लिए एकमेव मो.साकिब जिम्मेवार हैं।
सबसे आश्चर्यजनक जब यह मामला व्हाट्स एप के माध्यम से प्रधान मुख्य सुरक्षा आयुक्त को बरखास्त जवान द्वारा दिया गया तो एक महिला निरीक्षक को जांच के लिए भेज दिया गया। आज कैसे CWC ने उस बच्ची का उद्धार किया, प्रधान मुख्य सुरक्षा आयुक्त को भी क्या कानून की जानकारी नही,प्रक्रिया की जानकारी नहीं।
इस मामले की जांच किसी उच्च पद के महिला अधिकारी से क्यों नहीं करवाई गई। अनुशासित बल में अराजपत्रित अधिकारी एक महिला निरीक्षक एक राजपत्रित बरिष्ठ मंडल सुरक्षा आयुक्त रैंक के अधिकारी के घर एवं उसके मामले की जांच कैसे निर्भय,स्वतंत्रता से कर सकती है। क्या उसे डर नहीं होगा कि आज न कल उस महिला निरीक्षक को उस राजपत्रित अधिकारी के अधीन भी काम करना पड़ सकता है। क्या उसे नौकरी की परवाह नहीं?
मामला काफी पेंचीदा बन गया है मो.साकिब को अबिलम्ब बरखास्त करना चाहिए परन्तु इस देश में प्रशासनिक व्यवस्था कानून सोच और मानसिकता सब अंग्रेजो वाला ही है जिसमें अंग्रेज राजपत्रित अधिकारी गुलाम भारतीयों व भारतीय अराजपत्रित अधिकारियों पर राज करने के लिए भेदभावमूलक कानून बनाये थे और मानसिकता बनाये थे उसी कानून और मानसिकता को कुछ अधिकारी आज भी स्वतंत्र भारत में बनाये हुए हैं।
CWC के अधिकारियों को बच्ची से पुछताछ कर सच्चाई जानकर मो.साकिब के बिरूद्व तो अवश्य ही और अगर जवान ने भी शारिरिक शोषण किया है तो मामला पुलिस में दर्ज करवाकर सजा दिलाने का गंभीर प्रयास किया जाना चाहिए। जांच में मो.साकिब के पारिवारिक सदस्यों को भी दायरे में लाना चाहिए।
जवान अगर निर्दोष था तो जवान ने क्यों नहीं अपने बिरूद्ध ही पुलिस में शिकायत दी और सीडब्ल्यूसी को शिकायत दी। दोषी जितने भी हो और जो भी हो सजा मिलनी ही चाहिए। एक सूत्र ने तो यहां तक जानकारी दी कि मो.साकिब अपनी इस पोस्टिंग से काफी नाखुश है तथा लगता है हीन भावना के शिकार होकर मानसिक संतुलन खोते जा रहे हैं अगर ऐसा नहीं तो ऐसी बेवकुफी वाली कारवाई को कोई चतुर,चालाक,बुद्धिमान एवं विवेकी धीर गंभीर अधिकारी इतने उतावलापन में निर्णय नहीं लेता,जिसमें खुद फंस जाय। आखिर CWC ने अनाथ, गरीब,अनपढ़,प्रताड़ित,शोषित,बंधूआ मजदूर लड़की को एक राजपत्रित अधिकारी के घर से मुक्त नहीं करवाती। क्या RPF की छबि को इस अधिकारी ने धूमिल नहीं किया? क्या ऐसे अधिकारी बल में रहने योग्य हैं?