आरक्षण से मुक्ति का मार्ग है निजीकरण-जानिए।
आरक्षण भारत में एक संवैधानिक व्यवस्था है। देश में बहुत सारे जाति वर्ग को आरक्षण मिलता है और नित्य मांग हो रही है। आरक्षण को जन्मजात समझ लिया गया है।सत्तर वर्षों में कई पीढ़ियां गुजर गई,आरक्षित वर्ग से भी एक मलाईदार वर्ग तैयार हो गया है।अब देश दो वर्गो में बंट गया एक शासक वर्ग एक शासित वर्ग। कहने को लोक तंत्र है पर शासित वर्ग मतदाता वर्ग बन कर रह गये हैं।
प्रत्येक वर्ग और जाति का अब शासक वर्ग तैयार हो गया है। यहां शासक वर्ग से तात्पर्य बड़े व्यापारी,प्रशासक या राजपत्रित अधिकारी,नेताओं से है। शासक वर्ग शासन पर स्थायी कब्जा करना चाहते हैं,अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए स्थायी व्यवस्था करना चाहते हैं।आरक्षण समाप्त होगा तो सबका होगा। अतः शासक वर्ग एक तरफ आरक्षण को बनाये रखना भी चाहते हैं और आरक्षण वर्ग में प्रतियोगिता को भी समाप्त करना चाहते हैं जिससे उनके बच्चों को आरक्षण कोटा में चुनौती देने वाला कम हो।
अब समझिये।अंग्रेज और वर्तमान INDIAN ने बड़ी चालाकी से ब्राह्मण,क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र चार वैदिक वर्ण व्यवस्था (प्रशासनिक व्यवस्था)को शब्दों के जाल में उलझाकर A,B,C,D जैसे चार ग्रुप में सरकारी व्यवस्था को बांट दिया|
A=ब्राह्मण, B=क्षत्रिय, C=वैश्य D=शुद्र समझिये।आपने आज तक E ग्रुप का नाम सुना है। अंग्रेजी में D अंतिम वर्ग है और उसी तरह भारतीय व्यवस्था में शुद्र अंतिम वर्ग है।अब सरकारी सेवा में A,B,C,D के प्रतिष्ठा सामाजिक स्थिति को देखेंगे तो ब्राह्मण,क्षत्रिय,वैश्य और शुद्र के बराबर क्रमशः दिखायी देगा।
समय के अनुसार पेशागत स्थिति में श्रेणीगत थोड़ा बदलाव भी परिलक्षित हो रहा।भारत में A और B श्रेणी के सेवा को राजपत्रित सेवा कहते हैं एवं इनका पद बहुत ही सीमित है।वहीं C और D श्रेणी के पद अराजपत्रित हैं एवं इनकी सबसे ज्यादा संख्या है।आजादी के समय ग्रुप A और B के सेवा में काफी कम आरक्षित वर्ग का प्रतिनिधित्व था।
ग्रुप C और D में नौकरी पाना आसान भी था।सरकारी सेवा में ग्रुप C और D के कर्मियों को भी अच्छी भली वेतन मिलती है जिसके बल पर आरक्षित वर्ग के ग्रुप C और D के कुछ बच्चे पैसे के बदौलत अच्छी शिक्षा पाकर ही ग्रुप A और B के सेवा में आरक्षण के बदौलत ही सही प्रवेश कर गये। नीति निर्धारण में सलाहकार की भूमिका या अन्य महत्वपूर्ण स्वतंत्र निर्णय में योगदान देने लगें।
परन्तु अब ये लोग भी अपनी अपनी जाति वर्ग के ब्राह्मण बन गये। अब आरक्षण एक समस्या बन गई इस मलाई को कोई छोड़ना नहीं चाहता और न सबको देना चाहता है।आरक्षित वर्ग से नये नये सामाजिक स्थिति में परिवर्तन कर ग्रुप A और B के ब्राह्मण और क्षत्रिय अपने पुत्र पौत्र को आरक्षण का लाभ स्थायी करवाना चाहते हैं। इसके लिए चुनौती देने वाले की संख्या सीमित रहे।
अब आरक्षण समाप्त हो जायेगा तो सबका घाटा होगा यानि A,B,C,D सभी को। क्योंकि सबसे ज्यादा चुनौती C और D आरक्षित वर्ग के सरकारी सेवक के बच्चे ग्रुप A और B के बच्चों को देंगे।
इस चुनौती को समाप्त करने का सबसे आसान उपाय आरक्षण तो रहे पर ग्रुप C और D के वर्ग की सरकारी नौकरी, जिसमें मोटी पगार मिलती है और उस मोटी पगार की बदौलत अच्छे कोचिंग ट्यूशन या संस्थान में पढ़ाई कर आरक्षित वर्ग के ग्रुप A और B के बच्चों को आरक्षित श्रेणी में चुनौती देतें हैं ,नहीं रहें।इसीलिए ग्रुप C और D की सरकारी नौकरी को ठेकाकरण कर दो।
सरकारी सेवा के सबसे निम्न श्रेणी के पद चपरासी,खलासी,सफाईवाला को नई नौकरी में वेतन कम से कम 25-30 हजार मिलता है और पुराने होने पर प्रोन्नति पाकर 50,60,70-80 हजार तक भी मिलता है साथ ही अच्छे सस्ते सरकारी मकान,इलाज और विभिन्न भत्ता जिसमें पढ़ाई,हास्टल ईत्यादि अनेको भत्ता और सुबिधा मिलता है। जिसके बदौलत अच्छे स्कूल,अच्छी कोचिंग संस्थान में पढ़कर उनके बच्चे ग्रुप A और B सेवा में जा सकते थे पहले से आरक्षित वर्ग के ग्रुप A और B सेवा में मौजूद के बच्चों को चुनौती दे सकते थे। इसीलिए ग्रुप C और D के निजीकरण और ठेकाकरण को समाप्त कर दिया गया।
आज ठेकाकरण के कारण जो सफाई वाला 30,40,50-60 हजार का वेतन सरकारी सेवा में उठा रहे थे,वे ठेकेदार के अधीन 7,8, या 10 हजार में काम कर रहे हैं।अब इस 7,8, या 10 हजार में मकान किराया देंगे या अच्छा कपड़ा, खाना, तैल, साबून, दवा, ईलाज क्या करेंगे। ये अपने कितने बच्चों को ग्रुप A और B के बच्चों को इस ठेके वाले वेतन में ठेके की नौकरी के वेतन से पढ़ा लिखाकर चुनौती देने लायक तैयार कर पायेंगे।
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ग्रुप A और B श्रेणी की नौकरी का ठेकाकरण नहीं हुआ है। उनकी नौकरी सरकारी ही रहेगी।अतः आरक्षित वर्ग के ग्रुप A और B सरकारी सेवा में मौजूद के बच्चे मोटी सरकारी वेतन के बदौलत अच्छी कोचिंग के बदौलत ग्रुप A और B के सरकारी सेवा को अपने बच्चों के लिए आरक्षण के बल पर सरकारी नौकरी को स्थायी करने का पूरा उपाय कर लिए।परन्तु इसका घाटा भी है। आज ग्रुप A और B वाले चुप हैं, पर कल उनकी नौकरी पर भी खतरा उत्पन्न होगा और कुछ सेवा में नीजीकरण किया जायेगा तब नींद खुलेगी। एक मानसिकता बनायी जा रही है कब तक अक्षम लोगों को आरक्षण की वैशाखी दी जायेगी। आरक्षण खत्म करने से ,आरक्षण में छेड़छाड़ करने सत्ता जाने का वोट बैंक टूटने का खतरा पैदा हो रहा। इसीलिए निजीकरण का राह अपनाकर सरकारी नौकरी ही समाप्त कर दो।
इस मुद्दे पर आरक्षित वर्ग के नेता और प्रशासक सब एक हैं, चुप हैं,कोई आंदोलन नहीं। क्योंकि आरक्षण तो है। पर प्रतियोगी घट गये।
अगले अंक में जमींदारी प्रथा का आधुनिक रूप ठेकेदारी प्रथा।