करोड़ों के रेल सम्पति घोटाले में NCR विजिलेंस और RPF की लीपापोती

घटना उत्तर मध्य रेलवे के प्रयागराज (इलाहाबाद) मंडल के मानिकपुर के सिग्नल और टेलीकम्यूनिकेशन स्टोर डिपो से संबधित है।

मानिकपुर के सिग्नल और टेलीकम्यूनिकेशन स्टोर डिपो में NCR के विभिलेंस विभाग द्वारा दिनांक 3/8/2018 एवं 20/9/2018 को औचक जांच की गई,जिसमें भारी मात्रा यानि करोड़ो की रेलवे सम्पति को स्टॉक रजिस्टर से मिलान करने पर कम पाया गया।

विजिलेंस विभाग के तरफ से सर्वश्री सतीश भटनागर,संतोष कुमार,विशाल सिंह,..ए.ए.सिद्दकी संयुक्त जांच नोट पर हस्ताक्षर किये हैं।

एवं रेलवे के सिग्नल और टेलीकम्युनिकेशन विभाग के भी दो तीन संबधित अधिकारियों का हस्ताक्षर है ।

संयुक्त जांच सूची देखिये:-

(ऐसे ऐसे कई जांच सूची है)

इस जांच में जितने सामान स्टाक रजिस्टर से कम पाये गये उसका मूल्य करोड़ो में बताया जा रहा है।
सिग्नल और टेलीकम्युनिकेशन विभाग के ही एक अधिकारी श्री आनन्द कुमार JE/Sig ने सभी जगह शिकायत की है कि इस घोटाले में Sr.DSTE और DSTE की संलिप्तता है।

शिकायत की प्रति देखिये।

संयुक्त जांच के दो वर्ष होने पूर्ण होने जा रहे हैं पर विजिलेंस द्वारा किसी प्रकार की कोई FIR आरपीएफ को नहीं दी गई है।न कोई कानूनी कारवायी प्रारम्भ की गई।

मामला रेल सम्पति से संबधी है तथा कानूनी कारवायी का अधिकार सिर्फ और सिर्फ आरपीएफ को रेलवे सम्पति अवैध कब्जा अधिनियम में है।

इस संबध में विजिलेंस जांच की सुस्त रफ्तार ही विजिलेंस के जांच अधिकारी की भूमिका को संदिग्ध बना रही है।
ये सीधा सा मामला है स्टोर का जो कब्जाधारी है माल की चोरी,बेईमानी से दुर्विनियोग के लिए वह जिम्मेवार है।स्टाक रजिस्टर में माल है पर वास्तविक में माल नहीं है प्रारंभिक शक यही उठता है कि चोरी वहीं के कर्मी द्वारा की गई। जांच के क्रम में और लोग लपटें में आ सकते हैं।

विजिलेंस अधिकारियों को रेल सम्पति का मामला होने के कारण कोई कानूनी अधिकार नहीं है कि वह किसी आरोपी को गिरफ्तार कर सकती है और न्यायालय में अभियोजन के लिए प्रस्तुत कर सकती है। आज या कल उसे अभियोजन और न्यायायिक कारवाई के लिए RPF को देना ही होगा।

इस जांच को जानबुझकर विजिलेंस अधिकारियों द्वारा लटकाया जा रहा है। और सबूत को समाप्त होने तक लटकाया जा रहा। उसी समय अगर मामला आरपीएफ को दिया जाता तो जांच,छापेमारी में माल भी बरामद हो सकता था।परन्तु वर्षों की देरी जानबूझकर कर की जा रही है।
किस कानून में लिखा है कि रेल सम्पति से संबधित अपराध अगर रेल कर्मी करें तो रेलवे सम्पति अवैध कब्जा अधिनियम के तहत मुकदमा नहीं होगा और सिर्फ विभागीय कारवायी होगी।

आरपीएफ अधिकारियों की संदिग्ध और अधिकार से बाहर की जांच की भूमिका।

आश्चर्य होगा कि RPF के अधिकारी श्री आनन्द कुमार जेई सिग्नल द्वारा उच्चाधिकारियों को की गई शिकायत की जांच कर रहे हैं।
RPF के अधिकारी रेल सम्पति से संबधित या रेलवे एक्ट से संबधित अपराध की जांच भी अपराध दर्ज करने के बाद कर सकते हैं। कई मामलों में रेलवे सम्पति से संबधित अपराध की सूचना मिलने पर तथा अपराध का स्थान अनिश्चित होने पर अपराध का स्थान निश्चित करने के लिए जांच की जाती है। (जिसे बैक ट्रेसिंग जांच कहते हैं)परन्तु किस नियम से किसी कर्मचारी का घोटाले को उजागर करने या अपने अधिकारी के बिरूद्ध की गई शिकायत की जांच आरपीएफ के अधिकारी करते हैं।
इस संबध में संबधित आरपीएफ निरीक्षक से बात करने पर मुझे बरगलाने की कोशिश की कि उन्हें कोई शिकायत नहीं मिली विजिलेंस बड़ी जांच एजेंसी है इत्यादि इत्यादि।

हमने आरपीएफ निरीक्षक को सबंधित कानून की धारा में क्या लिखा है,बताया तो सांप निकला है बोलकर फोन काट दिये।

क्या बोलता है रेलवे सम्पति (अवैध कब्जा) संशोधित अधिनियम 2012- देखिये धारा-8

8. Inquiry how to be made—
(1) When an officer of the Force receives information about the commission of an offence punishable under this Act, or when any person is arrested by an officer of the Force for an offence punishable under this Act or is forwarded to him under section 7, he shall proceed to inquire into the charge against such person.

इसमें स्पष्ट लिखा है कि इस अधिनियम के अधीन दंडनीय अपराध की सूचना मिलने पर

अपराध की परिभाषा रेलवे सम्पति (अवैध कब्जा) संशोधित अधिनियम 2012- देखिये धारा-3 में है

3. Penalty for theft, dishonest misappropriation or unlawful possession of railway property.— Whoever commits theft, or dishonestly misappropriates or is found, or is proved] to have been, in possession of any railway property reasonably suspected of having been stolen or unlawfully obtained shall, unless he proves that the railway property came into his possession lawfully, be punishable—

एक और दंडनीय धारा 4 है। धारा-3 Penalty है तथा धारा-4 Punishment है। इसीलिए सिर्फ धारा 3 को लिखा हूं। बिना धारा 3 के धारा 4 का अपराध बन ही नहीं सकता।

अब Information यानि सूचना- धारा तीन में परिभाषित अपराध घटित होने की सूचना किसी भी माध्यम से मिल सकता है,यानि कोई सूत्र दे सकता है,मीडिया से भी मिल सकती है,टेलीफोन, अनजान पत्र किसी भी माध्यम से उस स्थिति में तथ्य की जांच के लिए बल अधिकारी शुरूआत करेगा।

रेलवे सम्पति (अवैध कब्जा) संशोधित अधिनियम 2012 में कहीं नहीं लिखा गया है कि विजिलेंस जांच हो तो बल अधिकारी जांच नहीं कर सकते।
आरपीएफ को चाहिए कि वह कांड को दर्ज कर विजिलेंस को लिखे कि रेल सम्पति की चोरी या बेईमानी से दुर्विनियोग से संबधित जितने भी रजिस्टर या दस्तावेज हैं उसे जांच के लिए सौंपे। अगर विजिलेंस नहीं सौंपती है न्यायालय में क्षेत्राधिकार के आधार पर कागजात सौंपने का दावा करे।

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इस मामले में सूचनाकर्ता का बयान लेना भी जरूरी नहीं RPF अधिकारी अपराध की पुष्टि के लिए स्वयं जांच कर सकते हैं और अगर सूचना की जांच में अपराध की पुष्टि होती है तो मामला दर्ज कर विधिवत् जांच करनी चाहिए।
क्या आरपीएफ के अधिकारियों को अपने कानूनी अधिकार का ज्ञान नहीं,ऐसा हो नहीं सकता।
इस संबध में श्री आनन्द कुमार ने रेल सम्पति से संबधित अपराध का मामला दर्ज करने के लिए लिखित शिकायत भी की है।

आरपीएफ प्रभारी का यह कहना कि विभाग द्वारा कोई शिकायत नहीं मिली बरगलाने के सिवा कुछ नहीं है।

आरपीएफ प्रभारी को अपराध की सूचना के आधार पर कांड दर्ज कर स्टोर की अपने स्तर पर संबधित विभाग को मेमो देकर संयुक्त जांच करनी चाहिए,उसके आधार पर कांड दर्ज कर कब्जेधारी का कमी के संबध में बयान और फिर गिरफ्तारी की जानी चाहिए।

जांच के दौरान जितने लोगों की संलिप्तता हो उसे भी आरोपी बनाया जाना चाहिए। यहां तक कि विजिलेंस के अधिकारियों को भी पुछताछ के लिए बुलाया जाना चाहिए।
अगर निम्नवर्गीय कर्मी ही संलिप्त करते तो विभिलेंस के अधिकारी की जांच तुरंत पूर्ण हो जाती है। इस मामले संदेह है बड़े अधिकारी भी संदिग्ध की सूची में हो सकते हैं या नाम आ सकता है जिसके कारण जांच दो वर्ष से पू्र्ण नहीं हो रहा या किसी के सेवा निवृति या प्रोन्नति के लिए लटकाया जा रहा हो। इस जांच को लटकाने वाले अधिकारी विजिलेंस की छवि को धूमिल कर रहे हैं।विजिलेंस के अधिकारी की भूमिका की भी जांच होनी चाहिए। अगर S&T का कोई अधिकारी विजिलेंस को जांच में सहयोग नहीं किया तो उस अधिकारी पर विभागीय दंडात्मक कारवायी कर या तो नौकरी से हटा देना चाहिए या अन्य तरीके से जांच में हाजिर होने के लिए बाध्य करना चाहिए।

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इस संबध में जोन के एक डिप्टी विजिलेंस अधिकारी से फोन पर जांच कब तक समाप्त होगा पूछना चाहा तो तो काफी बौखलाहट और घबराहट में बोले मैं जांच नहीं कर रहा। मेरी शिकायत कीजिए।
जब हमने समाचार का ड्राफ्ट कई अधिकारियों को भेजा उसमें सबसे पहले Sr.DSTE ने उस ड्राफ्ट को देखा उसके बाद अनजान नम्बर से कॉल आया और समाचार रोकने को बोला।

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