मुसलमानों के 72 फिरके जहन्नुम में जायेंगे-जानिए।
इस्लाम मजहब (धर्म नहीं) के प्रारम्भकर्ता हजरत मोहम्मद जिन्हें पैगम्बर कहा जाता है,उनके हवाले से एक हदीस है कि मुसलमान कौम 73 फिरकों(भागों) में बटेंगे और मात्र एक फिरका “जन्नत” में जायेगा,शेष 72 फिरके जहन्नुम की आग में जलेंगे। सिर पर जाबी टोपी बिना मुंछों वाली मेंहदी लगा ढ़ाढी,घुटनों से नीचे तक का कुर्ता एवं टखने से उपर तक का पैजामा पहने पुरूष एवं रंग बिरंगे लबादा(बुर्का) पहने पुरूष और स्त्री सभी मुसलमान नहीं हैं। ये स्वयं को मुसलमान कहते हैं पर मुसलमानों के ही दूसरे फिरके के नजर में काफिर हैं।
आप ज्यादा से ज्यादा शिया और सुन्नी नाम जानते होंगे। पर सच्चाई तो यह है कि ये 73 (फिरके) भागों में विभक्त हैं। इन 73 भागों में विभक्त मुसलमान एक दूसरे को काफिर कहते हैं । सभी खुद को असली मुसलमान और दूसरे भाग वालों को काफिर कहते हैं।मुसलमानों के पैगम्बर ही कह कर गयें हैं कि 73 फिरके में बटेंगे और मात्र एक फिरके ही जन्नत में जायेंगे। शेष 72 फिरके जहन्नुम में जायेंगे।
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इस हदीस के अनुसार यहूदियों के 71 फिरके,इसाईयों के 72 फिरके और मुसलमानों के 73 फिरके होंगे। मुसलमानों के बारें में एक धारणा अन्य धर्मों के लोंगो में है कि यह कौम सिर्फ धर्म के नाम पर लड़ता है? यह कौम के सभी फिरके के लोग सिर्फ खुद को सही मानता है,बाकी सबको गलत मानता है तथा उसे काफिर कहता है। वैसे कुरान में भी एक आयत है जिसकी चर्चा है खुब होती है कि इसमें मूर्तिपूजकों को हत्या करने का आदेश दिया गया है। इस पर भी आये दिन विवाद और सफाई का विश्लेषण चलते रहता है।
सबसे बड़ी बिडंम्बना यह है कि मुसलमान के दो मुख्य भागों के भीतर भी अनेकों भाग हैं एवं सभी एक दूसरे को काफिर कहते हैं। तथा खुद को ही असली मुसलमान। अक्सर मुस्लिम देश जहां गैर मुस्लिम आबादी न के बराबर है वहां भी ये आपस में ही शिया-सुन्नी इत्यादि के नाम पर एक दूसरे को समाप्त करने के लिए लड़ते रहते हैं। शांति और समझौते नाम की कोई बात ही नहीं दिखती।
जहां तक 73 फिरकों में बंटने एवं मात्र एक फिरके को जन्नत में जाने और 72 फिरकों को नरक में जाने की हदीस का है। यह तो हजरत मोहम्मद का कथन है। इससे साबित हो रहा कि मुसलमानों की एक बड़ी आबादी गलत राह पर है तथा उसे जहन्नम (नर्क) ही मिलेगी।
वो एक भाग कौन है जो जन्नत जायेगा तो सभी खुद को जन्नती ही कहते हैं। जबकि 72 फिरकों को जाना जहन्नुम में है और ये कथन हजरत मोहम्मद है,जो पैगम्बर थे,जिन पर कुरान उतरा था,फरिश्ते उनसे मिलते थे।ऐसा मुसलमानों का मानना है।
अतः जो जन्नत की आशा रखे हैं वो अधिकाशं जहन्नुम की आग में ही जलेगें। जिस तरह से मुसलमानों के सभी फिरके एक दूसरे को काफिर कहते हैं तथा दूसरे को समाप्त करने के लिए साजिश षडयंत्र और लड़ाई लड़ते रहते हैं,हो सकता ये 73 फिरके आपस में ही लड़कर इसी धरती पर समाप्त हो जाये और मात्र एक फिरका बचे,जो लड़ाई झगड़े के बीच सिर्फ अपना वजूद बचाये,वही जन्नत जाये। अभी सुन्नी बहुल पाकिस्तान में पहले हिन्दू, बौद्ध,सिक्ख,ईसाई,जैन,अहमदिया के बाद शियाओं को काफिर करार देने अभियान करांची से प्रारम्भ हो चुका है।
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