पूर्व आरपीएफ डीजी अरूण कुमार के समय इसी ECR में रेल सम्पति से संबधित अपराधों पर प्रायः लगाम लगा हुआ था। उनके जाते ही रेलवे सम्पति की चोरी की वारदात तो बढ़ी ही,उसमें भी रेसुब कर्मी की सीधी संलिप्तता कई बड़े घटनाओं में आ रही है। ECR में रेल सम्पति की चोरी की भी बड़ी बड़ी वारदातें पूर्व डीजी अरूण कुमार के जाते शुरू हो गयी।

अभी तक कई ऐसे कांड उजागर हो चुकें हैं,जिसमें रेल कर्मी के साथ RPF कर्मी की भी सीधी संलिप्तता आ रही। जिन कंधों पर चोरी रोकने, रेलवे की सम्पति को बचाने की जिम्मेवारी, वही चोरी में संलिप्त। इससे बड़ा दुर्भाग्य,और अवमूल्यन क्या होगा? RPF विभाग अपने मूल कर्तव्य से क्यों भटक रहा?

 

छोटे श्रेणी के रेसुब कर्मी, जो अपराध में संलिप्त हैं,उन पर कुछ मामलों में दिखावटी कारवाई तो हो रही,परन्तु मास्टरमाइंड बच रहे हैं। बिना उच्च स्तर के अधिकारियों के प्रत्यक्ष या गुप्त सहयोग या सहमति के इस तरह का अपराध संभव ही नहीं। सीधे सीधे समझिये पूर्व डीजी अरूण कुमार के समय इन्हीं अधिकारियों के रहते रेल सम्पति से संबंधित अपराध पर लगाम लगा था। पूर्व डीजी अरूण कुमार के जाते ही रेल सम्पति से संबधित बड़े बड़े अपराध शुरू। इसका क्या मतलब?

फंडा साफ नजर आता। चोरी करो,माल लाओ पकड़ में आ गये तो बचा लूंगा,ज्यादा दवाब बढ़ा तो एक आरोप पत्र देकर दंड भी दूंगा और जांच ऐसी करूंगा की अपील में सब खत्म। मतलब चोरी का मास्टरमाइंड भी हम, प्रणेता भी हम,कोतवाल भी हम,प्रशासनिक न्यायधीश भी हम, अकेले में सारी शक्ति समाहित।

रेसुब को संगठित अपराधिक गिरोह में परिवर्तित करने का प्रयास कुछ अधिकार सम्पन्न अधिकारी कर रहें हैं। माल और मलाई कोई और खा रहा दंड कोई और निरीह छोटे कर्मी भुगत रहे।

RPF में PCSC/DSC/post commander और चार पांच स्पेशल इन्हीं के पास सारी शक्ति यानि अपराधियों पर कारवाई,अपराध में सहमति और असहमति। बाद बाकी बलि का बकरा।

60 टन रेल दिन दहाड़े चोरी हुआ,पर भांडा भी उसी दिन फूट गया।दिनांक-4/3/2022 से चार दिन तक PWI को रेसुब थाना चोपन में रखा गया और बयान 8/3/22 को बयान लिखा कर लिया गया। क्यों इतने दिनों तक रखा गया और अगर रखा गया तो क्या पुछताछ जांच हुयी उसका मिनट दर मिनट ब्यौरा जारी हो। मात्र तीन पृष्ट का स्व हस्तलिखित बयान लिखने में PWI को चार दिन लग गये। कितना हास्यास्पद। सबको समझ में आ रहा क्या खेल खेला जा रहा था?

PWI का बयान पढ़ियेः-

मामला भी चार दिन बाद दर्ज हुआ।इन चार दिनों में PWI को हर संभव प्रलोभन दिया गया होगा कि RPF SI कुमार नयन की संलिप्तता न उजागर हो,परन्तु PWI ने पुरा कच्चा चिट्ठा खोलकर रख ही दिया। साथ ही सबूत का भी इशारा कर दिया।

PWI का बयान पढ़िये और निर्णय कीजिए,क्या SI कुमार नयन को बचाया नहीं जा रहा? कौन बचा रहा,बिना DSC के ये संभव नहीं, डीएससी भी कैसे बचा सकते है? PCSC भी तो इतने बड़े मामले में सुपरभीजन नोट भेजें होंगे।

क्या लाखों रूपये सरकारी वेतन वाले अधिकारियों को जांच करने नहीं आता? उन्हें PWI के बयान एवं उसमें बताये गये सबूत क्या पढ़ना नहीं आता? PWI के मोबाईल का CD-R और लोकेशन निकालने नहीं आता,उसमें से SI कुमार नयन का प्राइवेट नम्बर खोजने नहीं आता,फिर कुमार नयन के प्राइवेट नम्बर का CD-R लोकेशन, कुमार नयन के CUG एवं इस प्राइवेट नम्बर का लोकेशन हिस्ट्री,किसके नाम पर यह मोबाईल है सबकी जांच कर दूध का दूध और पानी का पानी चंद दिनों म़ें हो जायेगा। पर ऐसी जांच कौन करेगा? कोई अपने पांव पर कुल्हाड़ी मारेगा,खुद को दोषी साबित करेगा। संभव ही नहीं? सभी का भेद खुल जायेगा?

अभी तक इसमें DSC पर SI कुमार नयन को बचाने की उंगली उठ रही थी,पर नहीं इस बयान को देखने पर PCSC भी कम दोषी नहीं? जब PWI मोबाईल पर व्हाट्सएप पर कुमार नयन के सीयूजी एवं पर्सनल नम्बर पर बातचीत होने का दावा किया है तथा हिरासत के दौरान मोबाईल से पर्सनल नम्बर और काल हिस्ट्री मिटा दिया तो क्या हुआ?

CDR में सारा ब्यौरा निकल जायेगा। लोकेशन हिस्ट्री से पता चलेगा किस समय कहां मोबाईल था। पर सब को जांच में अनसुना कर दिया गया। इससे सिद्ध होता है कि मौन सहमति जोन के मुखिया तक कि हो सकती है। रेसुब में DIG या ASC या उपनिरीक्षक ज्यादा आगे पीछे वाले न हो तो मात्र कलम घिस्सू भर होते हैं।
कुछ निरीक्षक ASC और DSC से ज्यादा शक्तिशाली होते हैं। आखिर दुधारू गाय की पूछ हर जगह होती है। अभी तक SI कुमार नयन को गिरफ्तार हो जाना चाहिए था।


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DG/RPF जो एक IPS अधिकारी हैं,उन्हें IPS पद की गरिमा एवं प्रतिष्ठा,रेसुब विभाग की गरिमा एवं प्रतिष्ठा को बरकरार रखना है, तो इस जांच को CBI जैसी संस्था को सौंप देना चाहिए जिससे कोई भी प्रत्यक्ष या गुप्त रूप से शामिल बड़े राजपत्रित अधिकारी बच न पाये। DG महोदय को भी अभियुक्त PWI का बयान पढ़ना चाहिए।